डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘राजनीति के रंगरूटों के लिए प्रशिक्षण योजना। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 264 ☆

☆ व्यंग्य ☆ राजनीति के रंगरूटों के लिए प्रशिक्षण योजना

होशियार सिंह ‘देशप्रेमी’ अपनी ज़िन्दगी में बहुत से धंधे कर चुके हैं। धन भी काफी कमाया है। अब उनका रुझान राजनीति में प्रवेश के इच्छुक लोगों के लिए एक ट्रेनिंग स्कूल खोलने की तरफ है। उनका कहना है कि लोग बिना राजनीति की तबियत और उसके लिए ज़रूरी खूबियों को समझे उसमें जगह बनाने की कोशिश करते हैं और इसीलिए सारी ज़िन्दगी एक ही जगह पांव पीटते रह जाते हैं। हासिल कुछ नहीं होता।

एक मुलाकात में होशियार सिंह ने अपनी योजना पर तफ़सील से प्रकाश डाला। बताया कि पॉलिटिक्स का बुनियादी उसूल यह है कि कोई उसूल नहीं होना चाहिए। पॉलिटिक्स में उसूल पालने का मतलब अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना। उसूल वाला आदमी पॉलिटिक्स में नाकारा और नालायक माना जाता है।  कोई उसे सीरियसली नहीं लेता, न कोई उसकी बातों को तरजीह देता है। इसलिए पॉलिटिक्स के प्रवेशार्थी को जल्दी से जल्दी उसूलों की बीमारी से मुक्त हो जाना चाहिए। ‘उसूल उतारे, भुइं धरे, तब पैठे (राजनीति के) घर माहिं।’

होशियार सिंह ने दूसरी बात बतायी कि पॉलिटिक्स के प्रवेशार्थी को रीढ़ झुकाने और पावरफुल लोगों के चरण छूने में कोताही नहीं करना चाहिए। सामने वाला भ्रष्ट है या बलात्कारी, चरण छूने  वाले से उम्र में छोटा है या बड़ा, ये सब बातें मायने नहीं रखतीं। प्रवेशार्थी का लक्ष्य अर्जुन की तरह सब कुछ भूल कर चिड़िया की आंख पर होना चाहिए।

उनके अनुसार राजनीति के आदमी को अपने चेहरे को ऐसा रखना सीखना होगा कि कोई उसके मन का भाव न पढ़ सके। राजनीतिज्ञ का जीवन बहता पानी होता है। आज इस पार्टी के किनारे हैं, कल दूसरी पार्टी के किनारे। मन के भाव और इरादे छिपाने के लिए राजनीतिज्ञ को ‘पोकर फेस्ड’ होना चाहिए, यानी उसे जुआड़ी की तरह अपने चेहरे को भावशून्य रखना सीखना चाहिए ताकि अन्य खिलाड़ी उसके हाथ के पत्तों का अन्दाज़ न कर सकें।

आगे होशियार जी ने बताया कि राजनीति में आदमी को ‘थिक स्किन्ड’ यानी कुछ मोटी चमड़ी का होना चाहिए। कई बार ऊपर के नेताओं या जनता के हाथों अपमानित होना पड़ता है, अर्श से फर्श पर उतरना पड़ता है, लेकिन राजनीतिज्ञ को अपमान को दिल पर नहीं लेना चाहिए। ‘कभी न छोडें खेत’ की नीति पर चलना चाहिए। खुद्दारी और आत्मसम्मान को उठाकर परे रख देना चाहिए।

होशियार जी ने यह भी बताया कि वे प्रवेशार्थियों की ट्रेनिंग के लिए कुछ नाट्य-कर्मियों को भी बुलाएंगे जो उन्हें ज़रूरत पड़ने पर तुरन्त आंसू बहाने और बिना लज्जा के जनता के सामने झूठे वादे करने का अभ्यास कराएंगे। वे विपक्षियों के सच को तत्काल झूठा साबित करने का भी  अभ्यास करेंगे।

एक और बात होशियार जी ने कृपापूर्वक बतायी कि पॉलिटिक्स में ‘वफादारी’ का रोग नहीं पालना चाहिए। पार्टी में रहो, लेकिन जब छोड़ना फायदे का सौदा लगे, एक  झटके में, बेदिली से छोड़ दो। फिर पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं। ऐसा ही पुराने दोस्तों के मामले में भी करना चाहिए।

होशियार जी के हिसाब से एक बहुत ज़रूरी बात यह है कि राजनीतिज्ञ जब भी कहीं मुंह खोले, अपनी पार्टी के सर्वोच्च नेता की तारीफ में कसीदे ज़रूर पढ़े। यह उसके पद की सुरक्षा का रामबाण नुस्खा है। कई लोग भाषण देने से पहले प्रभु की स्तुति में श्लोक पढ़ते हैं। राजनीतिज्ञ के लिए हाई कमांड ही प्रभु होती है, उसी के हाथ में राजनीतिज्ञ का कैरियर, उसकी  सुख-समृद्धि होती है। इसलिए ऊपर वालों (भगवान नहीं) से हमेशा सुर मिलाकर चलना चाहिए।

सावधानी  हटते ही दुर्घटना घटती है और आदमी संसद से सड़क पर आ जाता है। इसलिए राजनीतिज्ञ को चौबीस घंटे चौकन्ना और जागरूक रहना चाहिए।

भाई होशियार सिंह ने अन्त में बताया की कई प्रवेशार्थी ‘जागृत अन्तरात्मा सिंड्रोम’ नामक रोग से पीड़ित होते हैं। उनकी अन्तरात्मा में बीच-बीच में पीड़ा होती है। ऐसे लोगों की अन्तरात्मा को सुलाने और शान्त करने के लिए देश के बड़े ‘एनेस्थीसिया’ विशेषज्ञों की राय ली जा रही है।

मैंने होशियार सिंह को उनकी योजना की सफलता के लिए शुभकामनाएं दीं कि वे भावी राजनीतिज्ञों में ज़रूरी खूबियां पैदा करके देश का भविष्य उज्ज्वल बनाने के अपने मिशन में कामयाब हों। साथ ही उन्हें आगाह किया कि राजनीति के रंगरूटों को ट्रेनिंग देते वक्त वे यह कभी न भूलें कि हमें जल्दी से जल्दी विश्वगुरू का दर्ज़ा प्राप्त करना है।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments