श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता एक हसीन ख्वाब…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 197 ☆

☆ # “एक हसीन ख्वाब…” # ☆

एक हसीन ख्वाब

देखते-देखते टूटा है

मेरा सफ़ीना

मंझधार में लूटा है

 

लहरों का दोष नहीं

मै ही बेहोश था

पतवार की आवाज से

मै ही मदहोश था

डगमगाती नाव देख

पतवार हाथ से छूटा है

मेरा सफ़ीना

मंझधार में लूटा है

 

कितने चंचल यह

बहते हुए धारे हैं  

कितने मनभावन यह

दूर किनारे हैं

किनारों के मोह में

अक्सर मेरा दम घुटा है

मेरा सफ़ीना

मंझधार में लूटा है

 

किरणों से चमकती

यह बूंद बूंद है

राह कठिन है

छाई हुई धुंध है

ना जाने क्यों मुझसे

 ऊपरवाला रूठा है

मेरा सफ़ीना

मंझधार में लूटा है

एक हसीन ख्वाब

देखते-देखते टूटा है /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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