श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।
ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं – ““सच्चे मानव – महेश भाई” – डॉ महेश दत्त मिश्रा ”।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
ण्डेय” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
डॉ महेश दत्त मिश्रा
☆ कहाँ गए वे लोग # ३५ ☆
☆ “सच्चे मानव – महेश भाई” – डॉ महेश दत्त मिश्रा ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
लड़कपन की एक बात याद आ गई, जब हम छठवीं या सातवीं में पढ़ रहे थे गांव से पढ़ने शहर आये थे। गरीबी के साथ गोलबाजार के एक खपरैल कमरे में रहते थे। बड़े भाई उन दिनों डाॅ महेश दत्त मिश्रा जी के अंडर में ‘इण्डियन प्राईममिनिस्टर थ्योरी एण्ड प्रेक्टिस’ संबंधी विषय पर पीएचडी कर रहे थे। पिताजी स्वतंत्रता संग्राम के दिनों नौकरी छोड़कर आंखें गवां चुके थे, मां पिता जी गांव में ही थे। घर के पड़ोस में महाकौशल स्कूल था और उस पार अलका लाज के पास साहू के मकान में महात्मा गांधी के निजी सचिव पूर्व सांसद डाक्टर महेश दत्त मिश्र जी दो कमरे के मकान में रहते थे। सीमेंट से बना मकान था। अविवाहित थे, खुद अपने हाथों घर की साफ-सफाई करते, खाना बनाते, बर्तन और कपड़े धोते। खेलते खेलते कभी हम उनके घर पहुंच जाते, एक दिन घर पहुंचे तो वे फूली फूली रोटियां सेंक रहे थे और एक पुरानी सी मेज में बैठे दाढ़ी वाले सज्जन को वो गर्म रोटियां परोस रहे थे, हम भी सामने बैठ गए, हमें भी गरमा गर्म एक रोटी परोस दी उन्होंने। खेलते खेलते भूख तो लगी थी वे गरम रोटियां जो खायीं तो उसका प्यारा स्वाद आज तक नहीं भूल पाए।
मिश्र जी गोल गोल फूली रोटियां सामने बैठे दाढ़ी वाले को परोसते जाते और दोनों आपस में हंस हंसकर बातें भी कर रहे थे। वे दाढ़ी वाले सज्जन आचार्य रजनीश थे जो उन दिनों विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र पढ़ाते थे। लड़कपन था खाया पिया और हम बढ़ लिए…. ।
आज जब ‘कहां गए वे लोग’ कालम लिखते हुए आदरणीय डॉ महेश भाई बहुत याद आए। हां जी, मैं उन्हीं महेश भाई की बात कर रहा हूं जो महात्मा गांधी के निजी सचिव थे, पूर्व सांसद थे, और बहुत सहज सरल व्यक्तित्व के धनी थे। आज भी स्वाधीनता सेनानी स्वर्गीय प्रोफेसर महेश दत्त मिश्र को हरदा के गांधी के रूप में जाना जाता है। पिछले कई वर्षों से मिश्र जी के परिजन उनकी स्मृति में हरदा में व्याख्यान माला आयोजित करते हैं।
महेश दत्त मिश्र का जन्म 1915 में हरदा में हुआ था। उनके पिता का नाम स्वर्गीय पंडित चंद्र गोपाल मिश्र था। उन्होंने बी ए (आनर्स), एम ए किया। उनकी पढ़ाई राधा स्वामी शैक्षणिक संस्थान, दयालबाग, आगरा, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और इलाहाबाद से हुई। जबलपुर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के वरिष्ठ रीडर; पूर्व में सहायक प्रोफेसर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय; 1958-59 में शिकागो विश्वविद्यालय के भारतीय सभ्यता पाठ्यक्रम के स्टाफ पर काम किया। 1952-57 में पीएसपी से जुड़े; 1930-32 में एक छात्र के रूप में और 1940 और 1942 में जेल गए; छात्र जीवन से कई वर्षों तक पीसीसी और एआईसीसी के सदस्य रहे। 1952 से 1957 तक वे मध्यप्रदेश विधानसभा में विधायक रहे । सामाजिक गतिविधियाँ: रचनात्मक कार्य, ग्रामीण उत्थान, सांस्कृतिक गतिविधियाँ में बचपन से वे सक्रिय रहे।छात्र जीवन से ही सभी गांधीवादी गतिविधियों स जुड़े रहे। रचनात्मक कार्य, खादी और ग्रामोद्योग, हरिजन उत्थान, हिंदू-मुस्लिम एकता, कृषि और ग्रामीण विकास में वे विशेष रुचि रखते थे। यूरोप, पूर्व के साथ-साथ पश्चिम, अमरीका, मध्य पूर्व देशों की उन्होंने अनेक बार विदेश यात्राएं की थी। वे जीवन भर अविवाहित रहे। प्रारंभिक नागरिक शास्त्र, सामाजिक अध्ययन जैसे अनेक विषयों पर उन्होंने किताबें लिखीं हैं। उन्हें सादर नमन।
श्री जय प्रकाश पाण्डेय
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