श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “जीवन चक्र…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 199 ☆
☆ # “जीवन चक्र…” # ☆
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जीने के लिए हम
क्या क्या नहीं करते हैं
रोज जीते हैं
रोज मरते हैं
दो जून की रोटी के लिए
क्या क्या नहीं करते हैं
चाहे दिन हो या रात
ठंड हो, गर्मी हो
या हो बरसात
किसी भी मौसम में
खुद की परवाह नहीं करते हैं
सुबह घर से निकलते हैं
दौड़ लगाते हैं
भीड़ का हिस्सा
बन जाते हैं
परिश्रम करते हैं
पसीना बहाते हैं
तब –
दो रोटी का
परिवार के लिए
इंतजाम हो पाता है
कुछ पल के लिए
आदमी सो पाता है
रोज अपने परिवार
की जरूरते
जो अनंत हैं
पर जरूरी हैं
उसे पूरा करना
हर शख्स की
मजबूरी है
यह ऐसी जंग है
जिसका अलग ही रंग है
इससे हर कोई लड़ता है
एक एक कदम
आगे बढ़ता है
किसी के भाग्य का
सितारा चमकता है
तो वो नया इतिहास
गढ़ता है
और कोई
हर रोज संघर्ष करता है
पर निराश है
बेकारी, भूख , गरीबी
उसके पास है
झूठे वादे
अंधविश्वास ही
उसको रास है
वो जीवित तो है पर
एक जिंदा लाश है
जो तूफानों से टकराता है
आंधियों से नहीं घबराता है
वो भवसागर पार
कर जाता है
और
जो डरता है
हिम्मत हारता है
वो टूटकर
बिखर जाता है
जीवन चक्र में
अनजाना सा
मर जाता है
यही जीवन का
अकाट्य सत्य है/
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© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈