श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “वन का हिरन…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 78 ☆ वन का हिरन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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मन! फिर हुआ
वन का हिरन
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लिए तिनके की आस
दबा होंठों में प्यास
खोजता फिर रहा
ज़िंदगी का अमन।
*
पत्थरों पर लिखी
प्यार की बोलियाँ
गीत झरना कोई
गुनगुनाता हुआ
रास्ते ओढ़कर
बैठे ख़ामोशियाँ
एक झोंका हवा
सरसराता हुआ
*
साँस भर दौड़ना
बस यही कामना
यूँ ही होता रहे
उम्र भर आचमन।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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