श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “पर्यावरण से जुड़ाव…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 220 ☆ पर्यावरण से जुड़ाव… ☆
कार्तिक मास जीवन को प्रकाशित करने का, देवउठनी का, जगमग दीपमाला का, अन्नकूट का प्रतीक है। केवल स्वयं तक सीमित न रहकर चारों खुशियों को बिखेरने का मार्ग। आँवला, तुलसी, गन्ना, सिंघाड़ा, सीताफल, चनाभाजी, फली, काचरिया साथ ही सभी सब्जियाँ। इनका पूजन सनातनी पूरे मास किसी न किसी रुप में करते हैं। खील- बताशे संग मिठाइयों को एक दूसरे के साथ बाँटकर कर खाना।
इस मास उपहार में मेवा मिष्ठान के साथ फलों की टोकरी भी उपहार में देने का प्रचलन लगातार बढ़ रहा है। देने का भाव जहाँ एक ओर आपमें उम्मीद जगाता हैं वहीं दूसरी ओर प्रकृति आपको इसे कई गुना करके लौटाती है। इससे सकारात्मकता व प्रसन्नता का भाव बढ़ता है।
आइए मिलकर तुलसी आराधना करें…
हरी भरी तुलसी से, आँगन महकता है
वास्तु दोष दूर होते, आप भी लगाइए।
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श्याम जी को प्यारी लगे, मस्तक विराज रही
घर -घर शोभा बढ़े, इसको सजाइए।।
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गीत सभी भाव भरे, भक्ति मन शक्ति जगे
ज्योति हो उम्मीद वाली, उसको बढ़ाइए।
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रोग सारे दूर होते, तुलसी सेवन करें
हरि की प्रिया कहाती, भजन सुनाइए।।
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© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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