स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 214 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
श्यामकर्ण अश्व
और माधवी
सभी रख दिये
एक तुला पर ।
धन्य कहूँ या धिक्कार ।
ऋषिवर्य !
जानता हूँ आपकी शक्ति, सामर्थ्य
और
तपबल ।
किन्तु
समझ नहीं पाया
श्याम कर्ण अश्वों की
गुरु दक्षिणा का अर्थ |
क्या कहीं दबी छिपी थी
रजोगुणी राजलिप्सा ।
माना
शिष्य के
हठाग्रह ने
कर दिया था
कुपित
किन्तु
आपकी क्रोधाग्नि ने
क्या क्या किया
भस्म ?
सोचा आपने ?
शिष्यत्व की शुचिता,
पिता की मर्यादा
नरेशों की प्रतिष्ठा ।
किलकारियाँ
ममतालुस्पर्श
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈