श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 152 – मनोज के दोहे ☆

रहा जगत में सत्य ही, हुआ झूठ का अंत।

वेद पुराणों में लिखा, कहते ऋषि मुनि संत।।

 *

जीवन अद्भुत मंच है, भिन्न-भिन्न हैं पात्र।

अभिनय अपना कर रहे, बने सभी हैं छात्र।।

 *

कठपुतली मानव हुआ, डोर ईश के हाथ।

कब रूठे सँग छोड़ दे, यह नश्वर तन साथ।।

 *

जीवन तक ही साथ है, बँधी स्वाँस की डोर।

जितना जीभर जी सको, होती नित है भोर।।

 *

मन बहलाने के लिए, दिया खिलौना साथ।

टूटे फिर हम रो दिए, बैठ पकड़ कर माथ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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