प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “हमारा नगर जबलपुर प्यारा। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 204 ☆ हमारा नगर जबलपुर प्यारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

रेवातट पर बसा जबलपुर पावन प्यारा शहर हमारा

जिसकी मनभावन माटी ने हमें संवारा हमें निखारा

*

इसके वातावरण वायु जल नभ ने नित ममता बरसाया

इसके शिष्ट समाज सरल ने सदा नया उत्साह बढाया

 *

इसके प्राकृत दृश्य और इतिहास ने नित नये स्वप्न जगाये

इससे प्राप्त विशेष ज्ञान ने पावन सुखद विचार बनाये

 *

भरती है आल्हाद हृदय मे इसकी सुदंर परम्पराएँ 

इसकी धार्मिक भावनाओ ने भक्तिभाव के गीत गुंजाए 

 *

इसकी हर हलचल में दिखता मुझको एक संसार सुहाना

श्वेत श्याम चट्टानो में है भरा प्रकृति का सुखद खजाना

 *

दूर दूर तक फैला दिखता विंध्याचल का हरित वनांचल

कृपा बांटता प्यास बुझाता माँ रेवा का पावन आंचल

 *

इसकी ही धडकन ने मुझको बना दिया साहित्यिक अनुरागी

संवेदी मन में ज्ञानार्जन की उत्सुकता उत्कण्ठा जागी

 *

यहीं ज्ञान वैराग्य भक्ति तप मे रत हैं साधू सन्यासी

उद्योग, व्यापारो व्यवसाय में है कर्मठ सब नगर निवासी

 *

शिक्षा रक्षा और चिकित्सा के कई है संस्थान यहाँ पर

सडक रेल औं वायुयान की यात्राओं हित साधन तत्पर

 *

सहज सुलभ सुविधायें सभी वे जो जीवन हित हैं सुखकारी

बाल युवा वृद्धो के जीवन हित संभव सुविधाये सारी

 *

लगता मेरा शहर मुझे प्रिय अनुपम सब नगरों से ज्यादा

परिवारी स्वजनों से ज्यादा यहाँ सबों का भला इरादा

इसकी सात्विक रूचि से संपोषित है मेरी जीवन धारा

यह ही पालक पोषक और परम प्रिय पावन नगर हमारा

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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