स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 215 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
और
नारी की अस्मिता
सब कुछ
हो गया
भस्म ।
और
माधवी से
रमण कर
आपने
अपने पौरुष को पंकिल
और तप तेज को भी
कर दिया कलंकित ।
क्यों किया आपने
यह
अकरणीय
कृत्य !
सच कहिये
माधवी के
देव दुर्लभ सौन्दर्य ने
मेनका की
सुधि दिलाकर
हिला दिया था न
आपका ब्रह्मचर्य ।
ओ ! त्रिकालज्ञ !
आप तो जानते थे
श्यामकर्ण अश्वों का
इतिहास,
लौटा सकते थे
माधवी को,
लेकिन
आपने ऐसा नहीं किया।
क्यों? क्यों? क्यों?
धिक्कार है
महातपस्वी ।
ले ली थी
शिष्य की परीक्षा ।
ससम्मान
लौटा सकते थे
माधवी को, लेकिन
आपने ऐसा नहीं किया।
क्यों ?क्यों ?क्यों ?
धिक्कार है
महातपस्वी।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈