श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “गुम हो गया शहर…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 81 ☆ गुम हो गया शहर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

***

ने कुहरे के बीच

गुम हो गया शहर ।

*

सुबह पर पहरा

कंपकंपाती धूप

सूर्य लगता उनींदा

ओस खिलते रूप

*

धुँध की चादर लपेटे

चाँद पहुँचा घर।

*

रँभाती है गाय

पक्षियों के दल

पेड़ संन्यासी हुए

हवा के आँचल

*

प्रकृति के रंग सारे

आए हैं निखर।

*

टिमटिमाती रोशनी

ठिठुरते आँगन

मंदिरों में गूँजती

प्रार्थना पावन

*

रात गहराते अँधेरे

हुए लंबे पहर।

      ——

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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