श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता एक कप कॉफ़ी…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #257 ☆

☆ तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

आस्तीन के साँप जो, बाहर निकले आज।

विचर रहे फुँफकारते, बढ़ी बदन में खाज।।

*

पीले पत्ते झड़ रहे, छोड़ रहे हैं साथ।

बँधी मुट्ठियाँ खुल गयी, हैं अब खाली हाथ।।

*

अलग अलग सब उँगलियाँ, सब की अपनी दौड़।

कैसे मुट्ठी बँध सके, आपस में है होड़।।

*

उँगली एक उठी उधर, चार इधर की ओर।

एक-चार के द्वंद का, मचा हुआ है शोर।।

*

अलग अलग सब उँगलियाँ, उठने लगी मरोड़।

कैसे मुट्ठी बँध सके, आपस में है होड़।।

*

ध्येय एक सब का यही, करना सिर्फ विरोध।

करें विषवमन ही सदा, नहीं सत्य का बोध।।

*

आजादी अभिव्यक्ति की, बिगड़ रहे हैं बोल।

प्रेम-प्रीत सद्भाव में, कटुता विष मत घोल।।

*

रेवड़ियाँ बँटने लगे, होते जहाँ चुनाव।

लालच देकर वोट ले, ये कैसा बर्ताव।।

*

इन्हें-उन्हें के भेद में, खोई निज पहचान।

आयातित अच्छे लगे, घर के कूड़ेदान।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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