श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 317 ☆
कविता – भगवान की फोटो, ए आई और मैं…
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
22 जनवरी 2024 को
मैने एक फोटो खींची , खुद की
और एक
भगवान श्री राम की
ए आई से कहा
अपनी फोटो इनपुट में डालकर
अपने बचपन की एक फोटो बनाने को और एक बुढ़ापे की भी
कंप्यूटर ने बना दिए मेरे
दो चित्र
उसी नाक नक्श के
एक बचपन का
एक पचपन का
फिर सोच में पड़ गया
खुद मैं
ईसा, राम , कृष्ण
तो सदियों पहले भी
उसी चेहरे मोहरे
से पहचाने जाते हैं
जिस चेहरे के सम्मुख
हम,
आज भी श्रद्धा नत
होकर ,
मन की बात कह लेते हैं,
और शायद सदियों बाद भी
हमारी पीढ़ियां
उसी आकृति के सम्मुख
आंखों में आख़ें डाल
कुछ
कहती रहेंगी
स्वयं को हल्का करने
ईश्वर ए आई से परे हैं
भले ही वे हमारे ही रचे हैं
☆
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
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