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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 213 ☆ श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆ - साहित्य एवं कला विमर्श हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 213 ☆ श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆ - साहित्य एवं कला विमर्श

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 213 ☆ श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 213 ☆

☆ श्रृंगार गीत : हरसिंगार मुस्काए ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

खिलखिलायीं पल भर तुम

हरसिंगार मुस्काए

.

अँखियों के पारिजात

उठें-गिरें पलक-पात

हरिचंदन देह धवल

मंदारी मन प्रभात

शुक्लांगी नयनों में

शेफाली शरमाए

.

परिजाता मन भाता

अनकहनी कह जाता

महुआ मन महक रहा

टेसू तन झुलसाता

फागुन में सावन की

हो प्रतीति भरमाए

.

कर-कुदाल-कदम माथ

पनघट खलिहान साथ,

सजनी-सिन्दूर सजा-

चढ़ सिउली सजन-माथ?

हिलमिल चाँदनी-धूप

धूप-छाँव बन गाए

हरसिंगार पर्यायवाची: हरिश्रृंगार, पारिजात, शेफाली, श्वेतकेसरी, हरिचन्दन, शुक्लांगी, मंदारी, परिजाता, पविझमल्ली, सिउली, night jasmine, coral jasmine, jasminum nitidum, nycanthes arboritristis, nyclan.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०१७

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈