स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 217 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
तुम्हारी सीमाएँ – मर्यादा?
ऋषिवर,
तुम भूल गये
साध्य और साधन की
पवित्रता ।
भूल गये
श्वेत केतु का संकल्प
उसकी व्यवस्था ।
सत्य मान बैठे
ऋषि का वरदान
अक्षत कौमार्य का विधान!
आवश्यक नहीं थी
गुरु दक्षिणा,
झेल लेते
गुरु का क्रोध,
उनका शाप ।
क्षमा करना
आपके द्वारा किये
कृत्य को
आज की भाषा में
‘दलाली’ कहते हैं
जिसका ध्येय
नारी की अस्मिता की मान रक्षा नहीं
मात्र धन होता है।
धिक्कार है तुम्हें।
उत्तर दे सको तो देना
अनुत्तरित है
मेरा प्रश्न !
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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