श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 111 ☆ देश-परदेश – रंगों की दुनिया ☆ श्री राकेश कुमार ☆
बचपन में लाल, हरा, नीला, काला, पीला और सफेद रंग ही सुने और देखे थे। वो तो बाद में भूरा, ग्रे आदि को समझा था।
आरंभ में नए रंगों का ईजाद पशु पक्षियों या सब्जी फल के नाम से जाने जाना लगा था। गुलाबी को गाज़री रंग कहने लगे थे, बाद में कपड़े वालों ने जबरदस्ती कपड़े बेचने के लिए गुलाबी और गाजरी को अलग रंग बना दिया था। हरा और तोते के रंग को भी अलग अलग मान्यता मिल चुकी हैं। मूंगे रत्न से भी एक नया रंग पैदा हो गया हैं।
ये सब छोड़िए सबसे आसान रंग सफेद और काला रंग की भी फैमिली बन चुकी हैं। काले में टेलीफोन ब्लैक, जेड ब्लैक, तवा ब्लैक ना जाने कितनी शाखाएं बन चुकी हैं। व्हाइट में भी स्नो व्हाइट, ऑफ वाइट, मून वाइट, क्रीमी वाइट ना जाने कितने रंग इन कपड़े और पेंट कंपनियों ने बना डाले हैं।
हमारे देश की महिलाएं स्वयं के बनाए हुए रंग भी बहुत पसंद करती हैं। कत्थे, भूरा रंग को कोकाकोला या काफी रंग कहना हो या फिर नारंगी रंग को फेंटा कलर के नाम से वस्त्र खरीद कर ये कहना ये ही कलर सबसे अधिक फैशन में हैं।
ऊपर की फोटो को पढ़ कर एक मित्र जो सूरत से साड़ियों मंगवा कर बेचता है का फोन आया। उसने कुछ प्रसिद्ध कॉफी शॉप के नाम लेकर कहा कि आज वहां चलकर कॉफी की फोटो खींचेंगे और पियेंगे भी, जिस कॉफी का रंग सबसे अच्छा और आकर्षित होगा, उसकी फोटो को सूरत भेज कर उसी रंग की साड़ियां मंगवाकर 2025 में अग्रणी रहेंगे। किसी को इस बाबत बताना नहीं, पूरे बाजार में इस नए रंग “मोचा मुस” की मार्केटिंग कर “पांचों अंगुलियां घी में” कर लेंगे।
आप लोग भी बाज़ार जाकर मोचा मुस रंग की पैंट/ शर्ट पहनकर 2025 फैशन के ब्रांड एंबेसडर बन सकते हैं।
© श्री राकेश कुमार
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