श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपके “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 155 – सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने ☆

पानी जब हो कुनकुना, तभी नहाते रोज।

काँप रहा तन ठंड से, प्राण प्रिये दे भोज।।

धूप सुहानी लग रही, शरद शिशिर ऋतु मास।

बैठे कंबल ओढ़ कर, गरम चाय की आस।।

नर्म दूब में खेलतीं, रोज सुबह की बूँद।

सूरज की किरणें उन्हें, सिखा रहीं हैं कूँद।।

 *

ठिठुरन बढ़ती जा रही, ज्यों-ज्यों बढ़ती रात।

खुला हुआ आकाश चल, मिल-जुल करते बात।।

 *

सूरज की अठखेलियाँ, दिन में करे बवाल।

शीत लहर का आगमन, तन-मन है बेहाल।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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