श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “क्या है जीवन…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 82 ☆ क्या है जीवन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
क्या है जीवन
जैसे उड़ता हुआ परिन्दा
खोज रहा है नीड़।
रिश्ते टूटी डाल
घोंसलों का अपनापन
बुनता रहा भरोसा
सन्नाटों में आँगन
लुटता जीवन
झुका हुआ होकर शर्मिंदा
टूट चुकी है रीढ़।
वक्त कँटीले ख्वाब
आँख राहें पथरीली
मोड़ हादसे पढ़ें
हवा भाषा जहरीली
कटता जीवन
कोलाहल पीकर है जिंदा
उगा रहा है भीड़।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈