सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “बौनापन”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 34☆
ए ख़ुदा!
कितना विशाल है
तेरा जिगर
और कितनी छोटी है मेरी हस्ती!
जब भी अपने आप को
नापने लग जाती हूँ,
तो एक मिटटी का कण भी
मुझसे बड़ा ही लगता है,
सच, नहीं हूँ मैं,
एक कतरा भी!
ए ख़ुदा!
अक्सर सीली सी शामों में
सोचती हूँ कि
कैसे तू ख़याल रखता है
अपने इतने सारे चाहने वालों का?
कैसे तू निभाता जाता है साथ
हर अलग-अलग दिशा में उड़ते हुए
इन तिनकों का?
कैसे बटोरता है तू
इनके एहसास?
कैसे कर लेता है तू
हर किसी से इतनी मुहब्बत?
और कैसे इन्हें आभास दिलाता है
अपनेपन का?
आज
जब मेरे आवारा से कदम
फिर तौलने लगे खुद को
तो उन्हें एक बार फिर
हवाएँ एहसास दिला गयीं
मेरे बौनेपन का!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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