श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “मौन भला सबको लगे…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 223 ☆ मौन भला सबको लगे… ☆
संस्कार, आचार, प्रचार, विकार, विचार, साकार, सदाचार ये सब मिलकर भावनाओं का प्रदर्शन करते हैं । मन के मनके जब शब्दों की माला पहन बाहर आते हैं,तो बोलने वाले की भावाव्यक्ति अपने आप प्रदर्शित हो जाती है । जैसी सोच होगी वैसा ही स्वतः दिखायी देने लगता है । संगति का असर किसी को नहीं छोड़ता सो सोच समझ कर दोस्ती करें । आजकल डिजिटल दोस्त ऑन लाइन फ्रॉड करके बुद्धू बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। समझदार और सचेत रहने में भलाई है । परिवार से बड़ा कोई संकटमोचक नहीं हो सकता है, इसलिए इसकी कीमत समझें और जीवन मूल्यों को पहचानकर ऑफलाइन रिश्तों का सम्मान करें ।
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नेक कर्म के साथ, सत्य राह चलते हुए ।
हाथों में ले हाथ, नहीं किसी को ताड़ना ।।
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जीवन है अनमोल, इसे व्यर्थ मत कीजिए ।
तोल मोल कर बोल, मौन भला सबको लगे ।।
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© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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