डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे – दुष्यन्त उवाच ।)
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आओ बैठो पास तुम, सुन लो मेरी बात।
कहना तुमको है बहुत, बड़ी सुहानी रात।।
शकुन्तले! तुम रूपसी, तुमको रहा निहार।
तुम हो मेरी प्रेमिका, दिल में प्यार अपार।।
प्रेम कुंज ऐसे सजा, अनुपम लगे विहार।
करता हूँ तुमसे शुभे, भाव भरी मनुहार।।
जड़ित अँगूठी देखकर, होता हर्ष अपार।
सुध तुम इतनी भूलती, डूबी जल की धार।।
परिणय मेरे के साथ में, देखो निज शृंगार।
नैन तुम्हारे कह रहे, झलक रहा है प्यार।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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