श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 320 ☆
कविता – सरप्लस… श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
बड़ी सी चमचमाती शोफर वाली
कार तो है
पर बैठने वाला शख्स एक ही है
हाल नुमा ड्राइंग रूम भी है
पर आने वाले नदारद हैं
लॉन है, झूला है, फूल भी खिलते हैं, पर नहीं है फुरसत, खुली हवा में गहरी सांस लेनें की
छत है बड़ी सी, पर सीढ़ियां चढ़ने की ताकत नहीं बची।
बालकनी भी है
किन्तु समय ही नहीं है
वहां धूप तापने की
टी वी खरीद रखा है
सबसे बड़ा,
पर क्रेज ही नहीं बचा देखने का
तरह तरह के कपड़ों से भरी हैं अलमारियां
गहने हैं खूब से, पर बंद हैं लॉकर में
सुबह नाश्ते में प्लेट तो सजती है
कई, लेकिन चंद टुकड़े पपीते के और दलिया ही लेते हैं वे तथा
रात खाने में खिचड़ी,
रंग बिरंगी दवाओं के संग
एक मोबाइल लिए
पहने लोवर और श्रृग
किंग साइज बेड का
कोना भर रह गई है
जिंदगी ।
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© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
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