श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता “हम अकेले ही चले थे” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #259 ☆

☆ हम अकेले ही चले थे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

हम अकेले ही चले थे

और तब तक ही भले थे।

 

थी नहीं पाबन्दियाँ, प्रतिकूल मन के

कुल मिलाकर साथ में अपने स्वजन थे

समन्वय सौहार्द्र निश्छल भावना से

बढ़ रहे थे राह में अपने जतन से,

फिर लगे जुड़ने हितैषी

स्वार्थ में फूले फले थे।

 

बीज अलगावी विषैले बो रहे ये

घाव खुद के खून से ही धो रहे ये

ये प्रपंची नासमझ भी तो नही हैं

खोद कब्रें स्वयं उसमें सो रहे ये

सिरफिरों की भीड़ से घिर

हम छलावे से छले थे।

 

सम्प्रदायों पंथ पक्षों के झमेले

हाथ मे खंजर लिए वे खेल खेलें

चौक चौराहे न गलियाँ है सुरक्षित

रक्तबीजों की तरह चहुँ ओर फैले

नीतिगत निर्णायकों से रहे

लंबे फासले थे।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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