सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतगीत – सिसक रहीं बागों की कलियाँ

? रचना संसार # 33 – गीत – सिसक रहीं बागों की कलियाँ…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

सिसक रहीं बागों की कलियाँ,

नागफनी के डेरे हैं।

श्वाँस हुई जहरीली अब तो,

अपने आँख तरेरे हैं।।

 **

मौन वृक्ष हिय आरी चलतीं,

दिवस हुए हैं अंधियारे।

कुंठाओं का सागर छलता,

संशय के बादल न्यारे।।

पुष्प गुलाबों के मुरझाए,

सभी भाग्य के फेरे हैं।

 *

सिसक रही बागों की कलियाँ,

नागफनी के डेरे हैं।।

 **

हैं पनिहारिन के घट रीते,

नीड पंछियों के  टूटे।

बिन मौसम होती बरसातें,

अपना घर खुद नर लूटे।।

शोकाकुल धरती माता है,

उर में दुख बहुतेरे हैं।

 *

सिसक रही बागों की कलियाँ,

नागफनी के डेरे हैं।।

 **

प्यासा नभ प्यासी नदिया है,

लाती उमस हवाऐं हैं।

स्वारथ ने मानव के देखो

रच ली स्वयं व्यथाऐं हैं।।

तन मन देखो व्याकुल होता,

पाये घाव घनेरे  हैं।

सिसक रही बागोंं की कलियाँ,

नागफनी के डेरे हैं।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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