श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 113 ☆ देश-परदेश – न्यौता ☆ श्री राकेश कुमार ☆

न्यौता, आमंत्रण, बुलावा… 

इन्विटेशन ये एक ऐसी क्रिया है, जो किसी भी पारिवारिक, धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, निज़ी आयोजनों का पहला कदम होता है।

बचपन में भी पिताजी को इस प्रकार के आमंत्रण आते थे। कभी वो कहते मैं अकेला ही जाऊंगा क्योंकि आमंत्रण सिर्फ मेरे नाम से है। परिवार सहित आमंत्रण आने पर हम सब भाई बहन भी कार्यक्रमों में भाग लेते थे।

शनै शनै न्यौता की परिभाषा समझ में आने लगी थी। जब कभी हमारे परिवार में कोई आयोजन होता तो भी “जैसे को तैसा” वाला फॉर्मूला लगा कर ही आमंत्रित किया जाता था। जिसने हमे परिवार सहित बुलाया उसको हम भी परिवार सहित बुलाते थे।

दूर दराज के शहर में रहने वाले रिश्तेदारों को पोस्ट कार्ड द्वारा अग्रिम सूचना प्रेषित की जाती थी। आयोजन से कुछ दिन पूर्व आमंत्रण पत्र भी भेजा जाता था। राजा महाराजा अपने दूत और कभी कभी तो कबूतर पक्षी से भी आमंत्रण भिजवाते थे। बहन और बेटी को तो निजी रूप में उसके शहर में जाकर पूरी इज्जत और आदर से आग्रह किया जाता था। लेकिन फिर भी फूफा कई बार नाराज़ हो जाते थे।

सदी के महानायक बिग बी ने जब अपने पुत्र के विवाह में कुछ मित्रों को आमंत्रित नहीं किया था, तो फिल्म उद्योग के नामी नाम दिलीप साहब, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे लोगों ने विवाह की मिठाई भी लेने से सार्वजनिक रूप से इन्कार कर दिया था।

“न्यौता में घोचा” ये किसी भी आयोजन में होना स्वाभाविक है। आज कल तो फोन, व्हाट्स ऐप, कार्ड आदि का प्रयोग होता हैं। आयोजन कर्ता के लिए ये सब से कठिन कार्य होता है।

नाराज़ तो लोग इस बात से भी हो जाते है, की फलां ने व्हाट्स ऐप का नया ग्रुप बनाया है, लेकिन हमें उसमें नहीं जोड़ा। हमने तो उसे अपने ग्रुप में सबसे पहले सदस्य बनाया था।

सेवानिवृत साथी भी कार्यरत साथियों के न्योते की बाट जोहते रहते हैं। फिर जब निमंत्रण नहीं आता तो कहते है, हमने तो उनको परिवार सहित बुलाया था, लेकिन वो अब भूल गए। सेवानिवृत साथी ये भूल जाते है, कि जब उन्होंने बुलाया था, तो दोनों सहकर्मी थे। अब दोनों की परिस्थितियां भिन्न हैं।

बिन बुलाए मेहमान बनने भी कोई बुराई नहीं हैं। समाज में ऐसे लोगों को ठसयीएल की संज्ञा दी गई हैं। सभ्य लोग तो इसको “मान ना मान मैं तेरा मेहमान” कह देते हैं। बचपन में कुछ मित्रों के साथ हमने भी बिना बुलाए बहुत सारे कार्यक्रमों में खूब मॉल उड़ाया था। अब आने वाले नए वर्ष की दावतों में ऐसे प्रयास करने पड़ेंगे। क्योंकि उम्र दराज लोगों को कम ही इस प्रकार के न्योते मिलते हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments