श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “कहानियों से जुड़ाव…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 225 ☆ कहानियों से जुड़ाव… ☆
कैसी भी घटना हो, समझाने हेतु आस पास से जुड़ी कहानियाँ ही सबसे सरल माध्यम होतीं हैं। जो कुछ हम देखते हैं उसे अपने शब्दों में ढाल कर सरलतम रूप से कहने पर बात हृदय में घर कर जाती है।
यही कारण है कि जब से बच्चा कुछ समझने लायक होता है हम उसे छोटी- छोटी प्रेरक कहानियों के द्वारा शिक्षा देते हैं। इसके अतिरिक्त जो कुछ भी वे आसपास देखते हैं उसे अवलोकन के द्वारा सीख कर आपको वापस लौटाते हैं।
अतः आप बच्चों में जो संस्कार देखना चाहते वो पहले आपको पालन करना होगा तभी उनसे ये उम्मीद की जा सकेगी कि वो भी रिश्तों के महत्व को समझें और जीवन रूपी किताब के पन्ने न बिखरने दें।
समय- समय पर हम महान व्यक्तियों की जयंती मनाते हैं इस अवसर पर उनके गुणों पर प्रकाश डालना, जीवनचर्या, समाज को उनका योगदान इन पहलुओं पर चर्चा आयोजित करते हैं।
अपने कार्यस्थल पर ऐसे फ़ोटो रखना, डायरी में उनके चित्र और तो और अपने बच्चों के नाम भी उनके ही नाम पर रखकर हम वही गुण उनमें देखना चाहते हैं। ये तो सर्वथा सत्य है कि हम जो देखते हैं सोचते हैं वैसे ही अनयास बनते चले जाते हैं, हमारा मनोमस्तिष्क उसे ग्रहण कर लेता है और उसे ही आदर्श बना कर श्रेष्ठता की ओर बढ़ चलता है।
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तिनकों को जोड़कर
धीरज को धर कर
छत हो उम्मीद वाली
कार्य ऐसे कीजिए।।
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पास व पड़ोस होना
कोई भी कभी न रोना
सबका विकास होवे
ध्यान यही दीजिए।।
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चलिए तो हौले- हौले
मीठे बोल बोले- बोले
कड़वे वचन छोड़
क्रोध सारा पीजिए।।
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परिवेश रूप ढलें
खुशियों के दीप जलें
प्रेम की दीवाल जहाँ
ऐसा घर लीजिए।।
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© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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