आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता मनमोहन जी मौन हुए…)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 217 ☆
☆ कविता – मनमोहन जी मौन हुए… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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मन मोहन जी मौन हुए
दे गए विरासत मूल्यों की।
कम से कम कहते
ज्यादा से ज्यादा करते थे हर दम।
शिष्ट और ईमानदार इंसां होते हैं उन सम कम।
बड़बोले भी देख योग्यता उनकी चुप रह जाते थे।
सब जग में मनमोहन जी
भारत का मान बढ़ाते थे।
वे कहते तो
जग सुनता था।
अर्थ तंत्र सपने बुनता था।
कायाकल्प किया भारत का
नीति-योजना नई बना।
सोना गिरवी पड़ा न रखना
सफल योजना चक्र बुना।
‘सिंह’ दहाड़ा नहीं, मौन रह
करता पल पल काम रहा।
अपनों से उपहास अवज्ञा
निंदा पाई, मौन कहा।
काश सियासत सीख सके
मनमोहन जी से सज्जनता।
पद-मद से हो मुक्त रख सके
सभी दलों में समरसता।
आम आदमी की हितरक्षक
हो पाएँ सरकारें अब।
धनपतियों की बनें न चारण
जनहित अंगीकारें सब।
मन मोहन मनमोहन ही थे
उन सम कोई अन्य नहीं।
समय लिखेगा कीर्ति कथाएँ
जो न अभी तक गईं कहीं।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२७.१२.२०२४
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