सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से …  लघु कथा – अमृत का प्याला… )

? मेरी डायरी के पन्ने से # 40 – लघु कथा – अमृत का प्याला…सुश्री ऋता सिंह ?

मेरे पास अब कोई परमानेंट ड्राइवर नहीं है। आवश्यकता पड़ने पर मैं ड्राइवर रखने वाली संस्था से ड्राइवर बुला लेती हूँ।

आज मुझे एक लंबी यात्रा पर निकालना था तो एक परिचित ड्राइवर जो अक्सर मेरी गाड़ी चलाने  के लिए आता था,  मैंने उसी की माँग डाली थी। सौभाग्यवश संस्था ने उसे गाड़ी चलाने के लिए  के लिए भेज दिया था।

गाड़ी में बैठते ही साथ उसने एक डिब्बा खोलकर मुझे मिठाई खिलाई और बोला , आंटी मैंने एक और ज़मीन का टुकड़ा खरीद लिया ।

उसकी बात सुनकर मुझे  खुशी हुई।

लोगों की गाड़ी चलाकर प्रति घंटे ₹100 कमानेवाले इस चालक ने अपने घर की खेती बाड़ी कभी नहीं बेची। बल्कि अब एक और टुकड़ा जमीन का खरीद ही लिया। उसकी हिम्मत की दाद देनी चाहिए।

मैंने खुशी से पूछा –  तो अब इसमें भी तो  खेती ही  करोगे न बेटा ?

वह  हँसकर बोला – जी, बिल्कुल ! अब यह खेती घर वालों के लिए है।

मतलब ?

वह गियर बदलते हुए  बोला,  अब मैं इस पर ऑर्गेनिक  खेती  करूँगा ।

तो क्या इसके पहले ऑर्गेनिक खेती नहीं करते थे ?

नहीं आंटी ,  हम हर प्रकार के पेस्टिसाइड डालकर ही फसलें उगाया  करते हैं। वरना कीड़े लगकर फसलें खराब होने लगती हैं। छोटी ज़मीन का एक और टुकड़ा है हमारे घर में  जिस पर घर पर लगने वाली रोज़मर्रा की सब्ज़ियाँ उगाई जाती हैं। अब परिवार बड़ा हो गया  है इसलिए एक और ज़मीन के टुकड़े  की जरूरत पड़ गई। अब उन दोनों ज़मीन के टुकड़ों पर घर के लोगों के लिए बिना किसी प्रकार के पेस्टिसाइड यूज़ किए , गोबर  खाद आदि डालकर खेती करेंगे। घरवालों को ,बच्चों को सबको शुद्ध और ताज़ी सब्ज़ियाँ नियमित रूप से अब मिला करेंगी।बच्चे हेल्दी रहेंगे।

मैंने एक गहन उच्छ् वास छोड़ा।

सोचने लगी औरों को  जहऱ देने  वाले सारा अमृत का प्याला अपने लिए ही रख लेते हैं!! शायद यही ज़माने का नियम है।

© सुश्री ऋता सिंह

30/7/23

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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