श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज क दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 158 – सजल – एक-एक कर बिछुड़े अपने ☆
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हँसी-खुशी *परिवार* की, आनंदित तस्वीर।
सुख-दुख में सब साथ हैं, धीर-वीर गंभीर।।
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*माया* जोड़ी उम्रभर, फिर भी रहे उदास।
नहीं काम में आ सकी, व्यर्थ लगाई आस।।
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टाँग रखी दीवार पर, मात-पिता *तस्वीर*।
जिंदा रहते कोसते, उनकी यह तकदीर।।
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यादें करें *अतीत* की, बैठे सभी बुजुर्ग।
सुदृढ़ थी दीवार तब, बचा तभी था दुर्ग।।
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*कविता* साथी है बनी, चौथेपन में आज।
साथ निभाती प्रियतमा, पहनाया सरताज।।
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तन-मन आज *जवान* है, नहीं गए दरगाह।
उम्र पचासी की हुई, देख करें सब वाह।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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