श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बन गया ग़ुलाम…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 85 ☆ बन गया ग़ुलाम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
☆
हल्कू को आज नहीं
मिला कहीं काम।
**
मनरेगा की
पूरी हुई हाजिरी
पटवारी ने दी
ताकीद आख़िरी
*
रोजनामचे से भी
काट दिया नाम।
**
बिटिया का गौना
लो फिर गया है टल
खूँटी पर टाँग दिया
आस का महल
*
महंगाई में रुपया
हो गया छिदाम ।
**
ऊपर से नीचे तक
बन साहूकार
ग़रीबों की रोटी
सब हिस्सेदार
*
भूख के लिए रमना
बन गया ग़ुलाम ।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈