सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – गीत – कैसे पारावार लिखूँ…।
रचना संसार # 34 – गीत – कैसे पारावार लिखूँ… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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भावों की सूखी निर्झरिणी।
कैसे पारावार लिखूँ।
रंग बदलती इस दुनिया का,
कैसे जीवन सार लिखूँ।।
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अवसर वादी मनुज हुआ है,
कलुषित विचार धारा है।
भेदभाव की कुटिल चाल से ,
प्रेम -भाव भी हारा है।।
मानवता पीड़ित घातों से,
भूले प्रभु उपकार लिखूँ।
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भावों की सूखी निर्झरणी,
कैसे पारावार लिखूँ।।
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शोषित दैन्य दशा दीनों की,
है निराश तरुणाई भी।
पश्चिम की इस चकाचौंध में,
रोती है अरुणाई भी।।
व्याकुल है ये कवि मन मेरा,
क्या विरही शृंगार लिखूँ।
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भावों की सूखी निर्झरणी,
कैसे पारावार लिखूँ।।
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साये में बन्दूकों के अब
देख जिन्दगी पलती है।
खंडित प्रीति विकल मन विचलित
अँगड़ाई भी खलती है।
पथराई आँखे जन जन की ,
जलते हैं अंगार लिखूँ।
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भावों की सूखी निर्झरणी,
कैसे पारावार लिखूँ।।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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