श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “स्मृतियाँ/Memories”में उनकी स्मृतियाँ । आज के साप्ताहिक स्तम्भ में प्रस्तुत है एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति “सच्चाई”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ स्मृतियाँ/MEMORIES – #7 ☆
☆ सच्चाई ☆
मै तो उड़ने लगा था झूठे दिखावे की हवा मे
सुना है वो अभी भी सच्चाई की पतंग उड़ाता है ||
जवान हो गयी होगी एक और बेटी, इसीलिए आया होगा
वरना कहीं पैसे वाला भी कभी गरीब के घर जाता है ||
वो परदेश गया तो बस एक थाली लेकर, जिसमें माँ परोसती थी
बहुत पैसे वाला हो गया है, पर सुना है अभी भी उसी थाली मे खाता है ||
सुनते थे वक्त भर देता है, हर इक जख्म को
जो जख्म खुद वक्त दे, भला वो भी कभी भर पाता है ?
© आशीष कुमार
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति