श्री यशोवर्धन पाठक
(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व “प्रखर पत्रकार, प्रसिद्ध कवि स्व. हीरालाल गुप्ता” के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
स्व. हीरालाल गुप्ता
☆ कहाँ गए वे लोग # ४१ ☆
☆ “प्रखर पत्रकार, प्रसिद्ध कवि स्व. हीरालाल गुप्ता” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
सबको प्रोत्साहन और प्रकाशन देने वाले स्व. हीरालाल जी गुप्ता प्रदर्शन से परे गुप्त ही बने रहना चाहते थे। न तो उन्होंने अपने पत्रकार होने का कभी ढिंढोरा पीटा और न ही कभी किसी पर रौब गालिब किया। कलम को कभी कुल्हाड़ी नहीं बनने दिया। पद और अधिकार उनके व्यक्तित्व पर कभी हावी नहीं हो पाये।
उपरोक्त प्रतिक्रिया है सुप्रसिद्ध साहित्यकार और पत्रकार श्रद्धेय डा. राजकुमार सुमित्र जी की, जो कि उन्होंने पत्रकारिता और साहित्य के सशक्त स्तंभ श्रद्धेय स्व. श्री हीरालाल जी गुप्ता के व्यक्तित्व और कृतित्व को उजागर करते हुए एक लेख में व्यक्त की थी। गुप्ता जी आत्म विज्ञापन और प्रचार से दूर रह कर सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत पर ही विश्वास करते थे। वे जीवन पर्यन्त सादगी से ही रहे और उन्होंने नाटकीयता, बनावटीपन और प्रदर्शन से दूर रह कर अपने व्यवहार और वाणी में भी सादगी और स्वाभाविकता को ही प्रमुखता दी। यही कारण है कि जहां पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने निर्भीकता और निष्पक्षता जैसे मानदंडों को अपनाया वहीं कविता के क्षेत्र में उन्होंने भावनात्मकता और हार्दिकता के साथ अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया।
बचपन में मेरे घर पर जो विशिष्ट व्यक्ति परिवार के मध्य सराहनात्मक रुप से चर्चा का विषय बनते उनमें श्रद्धेय श्री हीरालाल जी गुप्ता भी प्रमुख रुप से शामिल रहते। पूज्य पिता स्व. पं. भगवती प्रसाद जी पाठक के अभिन्न मित्र के रुप में चाहे जब गुप्ता जी के व्यक्तित्व की चर्चा होती। बाद में बड़े भाई श्री हर्षवर्धन, सर्वदमन और प्रियदर्शन ने भी “नवीन दुनिया” समाचार पत्र से पत्रकारिता प्रारंभ की और श्री गुप्ता जी ने मेरे तीनों भाइयों के पत्रकारिकता कार्य में संरक्षक और शिक्षक की प्रभावी भूमिका का निर्वहन किया। घर पर जब श्री गुप्ता जी की प्रखर लेखनी और प्रेरक व्यक्तित्व के बारे में बातचीत होती तो मैं बड़े ध्यान से बातें सुना करता। पिताजी द्वारा गणेश उत्सव पर आयोजित काव्य गोष्ठी में जब गुप्ता जी घर आते तो उनकी कविताएं सुनने का मुझे भी अवसर मिलता। उनकी कविताएं हम सभी को मंत्रमुग्ध कर जातीं। बड़े भाइयों के साथ मै भी उन्हें चाचा जी कहकर संबोधित और सम्मानित करता और गौरवान्वित होता।
महाविद्यालयीन अध्ययन के दौरान नवीन दुनिया प्रेस में मैं अक्सर आदरणीय श्री गुप्ता जी से मिलने जाया करता। वे मुझसे बड़े अपनेपन के साथ मेरे वर्तमान और भविष्य के संबंध में अनेक चर्चाएं करते और यथोचित मार्गदर्शन करते। उनका सोचना था कि व्यक्ति की जिस क्षेत्र में रुचि हो, उसी क्षेत्र में उसे आगे बढ़ना चाहिए। वे मेरी रुचि को देखते हुए मुझे हमेशा लेखन के लिए प्रोत्साहित करते। उनका नजरिया था कि मुझे पत्रकारिता या अध्यापन के क्षेत्र में कार्य करना चाहिए। मैंने जब सहकारी प्रशिक्षण के क्षेत्र में व्याख्याता और प्राचार्य के दायित्वों का निर्वाह करते हुए साहित्यिक लेखन भी जारी रखा तो मुझे गुप्ता जी की सभी बातें बरबस याद आ गईं कि उनका मार्गदर्शन मेरे लिए कितना महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। एक मैं हूं जिसे गुप्ता जी का इतना प्यार मिला, प्रेरणा मिली, लेकिन मेरे जैसे न जाने कितने होंगे जिनके जीवन निर्माण में गुप्ता जी का मार्गदर्शन सहायक सिद्ध हुआ होगा।
कविता के क्षेत्र में गुप्ता जी का उपनाम “मधुकर” उनके जीवन में सदा अपनी सार्थकता प्रदर्शित करता रहा। उनकी सहजता और सरलता उनके जीवन की एक बड़ी विशेषता रही। तभी आदरणीय श्री श्याम सुन्दर शर्मा ने उनके बारे में लिखा था कि “श्री गुप्ता जी की एक और विशेषता थी, उनका वैष्णव स्वभाव। उनके व्यक्तित्व की सरलता और सहजता ने उनका साथ कभी नहीं छोड़ा। न तो उनकी वेषभूषा में बदलाव आया और न ही उनके व्यवहार में। आक्रामकता तो उन्हें छू तक नहीं गई थी लेकिन जो बात उन्हें सही लगती उस पर वे अडिग रहते थे और यही कारण था कि उन्हें पत्रकारिता के कार्य काल में अपने संपादकीय सहयोगियों का भरपूर सहयोग मिला। गुप्ता जी अपने पत्रकारिता और सामाजिक जीवन में अजातशत्रु के रुप में सभी के मध्य सदा सम्मानित रहे। स्व. श्री हीरालाल जी गुप्ता आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी स्मृतियां हमारे मानस पटल पर आज भी हमें प्रेरित और प्रभावित करतीं हैं। स्व. गुप्ता जी की स्मृति में जबलपुर की अनेक साहित्यिक संस्थाऐं 24 दिसंबर को स्व. हीरालाल गुप्ता जयंती समारोह आयोजित करती रही हैं, मेरे दृष्टिकोण से यह आयोजन युवा पीढ़ी को पत्रकारीय मूल्यों के साथ सकारात्मक दिशा दर्शन का प्रेरक आयोजन होता था। इस आयोजन में स्वर्गीय गुप्ता जी के परिवार के सभी सदस्यों की सहभागिता रहती थी। स्व. गुप्ता जी को सादर नमन।
© श्री यशोवर्धन पाठक
संकलन – श्री प्रतुल श्रीवास्तव
संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈