श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “नहीं आए तुम…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 86 ☆ नहीं आए तुम… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
तुम्हारी राह में
आँखें हुईं पत्थर
फिर भी नहीं आए तुम ।
तुम्हे मन में
नयन में
बसाया हमने
ढाल शब्दों में
तुमको गीत
सा गाया हमने
हृदय की कामनाएँ
रह गईं अक्सर
ख़ाली भर न पाए तुम ।
सदा उन्मुक्त हो
नभ में
उड़े बनकर के पाखी
क्षितिज के पार
घर की चाह
लेकर जिए एकाकी
हवा पर तैरते
निकले ज़रा छूकर
घटा से छा गए तुम ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
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