श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “मेलजोल का प्रतीक : मकर संक्रांति पर्व……”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 228 ☆ मेलजोल का प्रतीक : मकर संक्रांति पर्व… ☆
सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण संक्रांति कहलाता है । 14 जनवरी को सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए ये और भी खास होता है । सनातनी सभी लोग तीर्थ स्थानों में जाकर वहाँ नदियों में श्रद्धा पूर्वक डुबकी लगाते हैं । दान पुण्य करके प्रसन्नता का भाव रखते हुए तिल -गुड़ व खिचड़ी का सेवन करते हैं।
प्रयागराज महाकुंभ का मेला आस्था, भक्ति, श्रद्धा , विश्वास , साधना, शक्ति व सम्पूर्ण समर्पण का प्रतीक है । आइए प्रेम से कहें…
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तिल गुड़ के लड्डू खायेंगे, पर्व संक्रांति का मनायेंगे ।
झूमेंगे संग गुनगुनायेंगे, कुंभ मेले में हम तो जायेंगे ।।
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तिल – तिल कर न जले कोई, राह ऐसी नयी बनायेंगे ।
गीत खुशियों भरे जहाँ होवें, गम के बादल को मिल ढहायेंगे ।।
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सजा है आसमाँ पतंगों से, नेह के रंग सब उड़ायेंगे ।
पेंच पड़ते हुए गजब देखो, डोर मिल प्रीत की बढ़ायेंगे ।।
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दृश्य क्या खूब हुआ मौसम का, संगम में डुबकियाँ लगायेंगे ।
श्रद्धा से भोग चढ़ा आयेंगे, पर्व संक्रांति का मनायेंगे ।।
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© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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