आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक नवगीत – दूर कर दे भ्रांति)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 219 ☆

☆ नवगीत – दूर कर दे भ्रांति… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

दूर कर दे भ्रांति

आ संक्राति!

हम आव्हान करते।

तले दीपक के

अँधेरा हो भले

हम किरण वरते।

*

रात में तम

हो नहीं तो

किस तरह आये सवेरा?

आस पंछी ने

उषा का

थाम कर कर नित्य टेरा।

प्रयासों की

हुलासों से

कर रहां कुड़माई मौसम-

नाचता दिनकर

दुपहरी संग

थककर छिपा कोहरा।

संक्रमण से जूझ

लायें शांति

जन अनुमान करते।

*

घाट-तट पर

नाव हो या नहीं

लेकिन धार तो हो।

शीश पर हो छाँव

कंधों पर

टिका कुछ भार तो हो।

इशारों से

पुकारों से

टेर सँकुचे ऋतु विकल हो-

उमंगों की

पतंगें उड़

कर सकें आनंद दोहरा।

लोहड़ी, पोंगल, बिहू

जन-क्रांति का

जय-गान करते।

*

ओट से ही वोट

मारें चोट

बाहर खोट कर दें।

देश का खाता

न रीते

तिजोरी में नोट भर दें।

पसीने के

नगीने से

हिंद-हिंदी जगजयी हो-

विधाता भी

जन्म ले

खुशियाँ लगाती रहें फेरा।

आम जन के

काम आकर

सेठ-नेता काश तरते।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२७.१२.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/स्व.जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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