हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 274 ☆ व्यंग्य – परमलाल की पाप-मुक्ति ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘परमलाल की पाप-मुक्ति ‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 274 ☆

☆ व्यंग्य ☆ परमलाल की पाप-मुक्ति

परमलाल की ज़िन्दगी घोर गरीबी में गुज़री। छोटे-मोटे अपराध करके ज़िन्दगी को ढकेलना नियति बना रहा। पढ़ने-लिखने का कोई वातावरण नहीं रहा। नतीजतन कल की समस्या हमेशा सामने खड़ी रही।

बड़ा होने पर बड़े अपराधियों का संग मिला। आसानी से बड़ी कमाई करने का वही ज़रिया दिखा। चोरी, सेंधमारी, सड़क पर छीन-झपट करने लगा। किस्मत अच्छी थी कि कभी पकड़ा नहीं गया।

हिम्मत बढ़ी तो एक दिन दो साथियों के साथ एक एटीएम मशीन तोड़ने में लग गया। तभी किसी ने पुलिस को सूचित कर दिया और तीनों धर लिये गये। तीन महीने बाद तीनों ज़मानत पर छूटे, लेकिन तब से पुलिस की नज़र उनकी गतिविधियों पर रहती है। हर हफ्ते थाने में हाज़िरी देनी पड़ती है। ज़िन्दगी मुश्किल हो गयी है।

इसी बीच महाकुंभ का हल्ला मचा। टीवी पर कुंभ में इकट्ठे जनसमूह की तस्वीरें दिन रात चलने लगीं। परमलाल के घर में छोटा टीवी था। उसी में वे रंग बिरंगे चित्र चलते रहते। परमलाल आंखें फाड़े उन दृश्यों को देखता रहता।

फिर एक दिन एक धर्माचार्य आये। उन्होंने बताया कि कुंभ में गंगा-स्नान से अनेकों जन्म के पाप धुल जाते हैं। परमलाल चमत्कृत हुआ। तुरन्त तैयारी करके प्रयागराज पहुंच गया। रात को एक चाय वाले की खुशामद करके उसकी दूकान में सोया। सवेरे स्नान किया। प्रमाण के तौर पर वहां उपस्थित लोगों की मदद से रील भी बना ली। और भी प्रमाण संभाल कर रख लिये। फिर खुश खुश घर लौटा।

कुंभ से लौटकर सीधा अपने वकील के पास पहुंचा। बोला, ‘वकील साहब, मैं कुंभ स्नान कर आया। ये सारे सबूत हैं। अब मेरे सारे पाप धुल गये। अब आप अदालत में अर्जी लगा दें कि मेरा केस खारिज करके मुझे बरी कर दिया जाए। अब आगे कोई पाप नहीं करूंगा।’

तब से वह वकील साहब के चक्कर काट रहा है और वकील साहब उससे पीछा छुड़ाते फिर रहे हैं।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈