श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता जय संविधान…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 206 ☆

☆ # “जय संविधान…” # ☆

जीने का महामंत्र है

प्रशासन का अचूक तंत्र है

हर आंख का सपना है

सबसे अलग अपना गणतंत्र है

 

खत्म हो गई पेशवाई

चली गई श्रीमंत शाही

नियंत्रित हो गई बेबंदशाही

तब आई है लोकशाही

 

हर चेहरे पर नई उमंग है

हर दिल में नई तरंग है

तम की काली रात ढल गई

नई सुबह में खुशियों के रंग है

 

खिले हुए हैं बगिया के फूल

दूर हो गई परतंत्र की धूल

भ्रमर पराग लूटा रहे हैं

चाहे फूल हो या हो शूल

 

सजे हुए हैं यह कार्यालय

राष्ट्रगीत बजाते यह विद्यालय

परेड करती यह नव पीढ़ी

उनके हौसलों के आगे नतमस्तक है ऊंचा हिमालय

 

कुछ संकीर्ण विचार वालों ने उठाया यह बेड़ा है

आस्थाओं के नाम पर कह रहे हैं कि यह टेढ़ा है

परिवर्तित करने इस महाग्रंथ को

एक अघोषित युद्ध छेड़ा है

 

यह जंग अब हमको लड़नी होगी

इन कुत्सित इरादों पर पाबंदी जड़नी होगी

जन-जन में अलख जगा कर

उनके चेहरे पर कालीख मढ़नी होगी

 

अब तक परतंत्र का जहर बहुत पीया है

गुलामी का जीवन बहुत जीया है

हम सब हैं इंसान बराबर

गणतंत्र ने अधिकार सबको दिया है

 

इसमें बसते हैं जनता के प्राण

इससे है हम सब का सम्मान

यह है हर भारतवासी की शान

गर्व से बोलो जय संविधान /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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