श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “क्यों?” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 89 ☆ क्यों? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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क्यों है चिड़िया गुमसुम बैठी
क्यों आँगन ख़ामोश हुआ है ।
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क्यों किसने है क्या कर डाला
क्यों सबके मुँह पर है ताला
क्यों चमगादड़ रात हुई है
दिन दुबका ख़रगोश हुआ है ।
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कितना तो मजबूर आदमी
क्यों पाले दस्तूर आदमी
क्यों जीवन बन गया त्रासदी
क्यों ठंडा सब जोश हुआ है ।
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क्यों दुख हर घर की पहचान
क्यों सुख मरा बिना विष पान
क्यों तम बिकता दूकानों में
क्यों सूरज मदहोश हुआ है ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈