श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “चरैवेति चरैवेति…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 230 ☆ चरैवेति चरैवेति…… ☆
आस्था और भक्ति के रंगों से सराबोर श्रद्धा व विश्वास सहित महाकुम्भ में मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान की डुबकी हमें मानसिक मजबूती प्रदान करेगी। जो चाहो वो मिले यही भाव मन में रखकर श्रद्धालु कई किलोमीटर की पैदल यात्रा से भी नहीं घबरा रहे हैं। मेलजोल का प्रतीक प्रयागराज सबको जीवन जीने की कला सिखाने का सुंदर माध्यम बन रहा है।
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गंगे च यमुने चैव
गोदावरी सरस्वती
नर्मदे सिंधु कावेरी
जलेsस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।
आइए मिलकर कहें…
लक्ष्य कितना भी कठिन हो
तू न पर घबरायेगा।
कैद में पंछी सरस मन
मुक्ति भी पा जायेगा।।
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रुक न सकता ठोकरों से
आज वो कैसे रुके ?
हस्त में तो देवि बसती
क्यों भला कैसे झुकें ?
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© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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