श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “अखबार…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 207 ☆
☆ # “अखबार…” # ☆
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सुबह चाय की चुस्कियाँ
और अखबार
हर शख्स है तलबगार
दिन अधूरा अधूरा सा है
बिन अखबार
पाठक होता है पूरा परिवार
टपरी वाला हो
या चाय की दुकान
मजदूर हो या किसान
झोपड़ी हो या ऊंचा मकान
स्टूडेंट हो या विद्वान
सब की जरूरत अखबार है
सब करते इसका इंतजार है
कुछ अच्छी खबरें
कुछ बुरी खबरें होती हैं
कुछ सच्ची खबरें
कुछ जरूरी खबरें होती हैं
कुछ हैडलाइन
ध्यान आकर्षित करती है
कुछ हैडलाइन
जिज्ञासा बढ़ाती है
तो कुछ हैडलाइन
त्रासदी पर
मन को रुलाती है
आजकल,
खबरें सेंसर होकर आ रही हैं
पत्रकारिता गुणगान गा रही है
सच्ची आलोचना विलुप्त हो गई
पत्रकारों को लगी यह कैसी बिमारी है
पत्रकार अगर डर जाएगा तो
अखबार का मूल उद्देश्य बिखर जाएगा
कालांतर में वह अखबार मर जाएगा
व्यवस्था की विसंगतियां
फिर बाहर कौन लायेगा ?
अखबार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है
अखबार विस्फोटक खबरों से भरा एक बारूदी बम है
बड़ी-बड़ी सियासतों को
अखबारों ने बदल डाला है
जनता के दिलों में राज करते हैं
इन अखबारों में बहुत दम है
आजकल पेड न्यूज़ का चलन हो गया है
हर अखबार बस विज्ञापन हो गया है
मूल उद्देश्य से भटक गए हैं
संपन्नता और ऐशो आराम के लिए
पत्रकारिता का सिद्धांत दफन हो गया है
अखबार अगर लिख नहीं सच पाएगा
तो सामाजिक क्रांति का
आंदोलन कैसे रच पाएगा
सियासत को आईना ना दिखा सका
तो अपना लोकतंत्र कैसे बच पाएगा ?/
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© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
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