श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित अप्रतिम गीत “हर पल हो आराधना”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 215 ☆
🌻 गीत 🌻 🌧️ हर पल हो आराधना 🌧️
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हर पल हो आराधना, इस जीवन का सार।
सच्चाई की राह में, प्रभु संभाले भार।।
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कुछ करनी कुछ करम गति, कुछ पूर्वज के भाग।
रहिमन धागा प्रेम का, मन में श्रद्धा जाग।।
गागर में सागर भरे, पनघट बैठी नार।
हरपल हो आराधना, इस जीवन का सार।।
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बूँद – बूँद से भरे घड़ा, बोले मीठे बोल।
मोती की माला बने, काँच बिका बिन मोल।।
सत्य सनातन धर्म का, राम नाम शुभ द्वार।
हर पर हो आराधना, इस जीवन का सार।।
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माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
परहित सेवा धर्म का, सदा लगाना टेर।।
अंधे का बन आसरा, करना तुम उपकार।
हर पल हो आराधना, इस जीवन का सार।।
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चार दिनों की चाँदनी, माटी का तन ठाट।
काँधे लेकर चल दिये, लकड़ी का है खाट।।
घड़ी बसेरा साधु का, थोथा सब संसार।
हरपल हो आराधना, इस जीवन का सार।।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈