श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सुनो शहर जी…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 90 ☆ सुनो शहर जी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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सुनो शहर जी
गांव पधारो
नेह निमंत्रण
तो स्वीकारो।
यहां हवा
स्वछंद घूमती
धूप धरा का
भाल चूमती
नदी निर्मला
के पानी में
अपने मैले
पांव पखारो।
पगडंडी को
सड़कें घूरें
गड्ढों वाले
घाव न पूरें
सफर हादसे
छोड़ जरा तुम
मेंड़ों वाली
गैल निहारो।
खेत हमारे
पूजन अर्चन
चौपालों पर
भजन कीर्तन
शाम सुहानी
भोर नित नई
आकर थोड़ा
समय गुजारो।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
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