आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – हे नारी!।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 221 ☆
☆ हे नारी! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
☆
हे नारी!
हो आद्य सुमन तुम
सुरभित करतीं सृष्टि सकल।
आद्य शक्ति हो,
ध्वनि-तरंग, लय से
रचना नित करो नवल।
कर्दम को
शतदल कर घोलो
श्वास-श्वास में नव परिमल।
त्रास-हास में
समभावी हो
रास-लास सृजतीं पल-पल।
तुम गौरी
काली कंकाली
कल-अब-कल की हो कल-कल।
तुम ही
भोग-भोग्या-भोजक
चंचल तुम्हीं, तुम्हीं निश्चल।
साध्य-साधना
साधक तुम ही,
तुम्हीं कलुष, तुम हो निर्मल।
सरला विमला
अमला तरला
वाष्प तुम्हीं हिम तुम्हीं सलिल।
पूजा पूजक
पूज्य तुम्हीं हो
तुम ही अमृत, तुम्हीं गरल।
तीन लोक में
दसों दिशा में
तुम ही निर्बल, तुम्हीं सबल।।
प्रात प्रार्थना,
संध्या वंदन,
निशा-गान हो, तुम अविकल।
प्रणति तुम्हें है
हे नर संगिनी!
तुमसे कुटिया राजमहल।
☆
© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१.२.२०२५
संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,
चलभाष: ९४२५१८३२४४ ईमेल: [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/स्व.जय प्रकाश पाण्डेय ≈