प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “कविता – माँ, मुझको शाला जाने दो…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 213 ☆
☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – माँ, मुझको शाला जाने दो… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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माँ मुझको शाला जाने दो।
पढ़-लिखकर कुछ बन जाने दो ॥
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घंटी मुझको बुला रही है।
याद साथियों की आ रही है
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मुझे वहाँ अच्छा लगता है।
मन में एक सपना जगता हैं ॥
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पढ़ते-लिखते गाते गाना।
खेल-खेल मिल खाते खाना
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दीदी मुझे प्यार करती है।
सबकी देखभाल करती है ॥
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नई कहानी कह रोजाना।
सिखलाती हैं चित्र बनाना ॥
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फूल भरी सुन्दर फुलवारी ।
आँखों को लगती है प्यारी
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सजा साफ सुथरा आहाता ।
सदा मेरे मन को है भाता ॥
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तस्वीरों से सजी दिवालें ।
कहती सब संसार सजा लें
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सारा वातावरण सुहाना ।
वहाँ ज्ञान का भरा खजाना
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मैं पढ़-लिख होशियार बनूँगा ।
अनुभव ले सरदार बनूँगा ।
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भारत माँ को सुखी बनाने ॥
घर-घर तक खुशियाँ पहुँचाने ॥
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मेहनत सोच विचार करूँगा।
जग में सबसे प्यार करूँगा ॥
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈