श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 335 ☆

?  आलेख – मृत्यु का भय…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

भगवान गरुड़ उड़ान भरते हुये पाटिलपुत्र में एक विष्णु मंदिर की परिक्रमा कर रहे थे उन्होने देखा कि  मंदिर की मुंडेर पर बैठा एक कबूतर कांप रहा था। गरुड़ जी को दया भाव जागृत हुआ, उन्होंने कबूतर से इसका कारण पूछ लिया। कबूतर ने बताया कि एक ज्योतिषाचार्य ने उसे बताया है कि कल प्रातःकाल उसकी मौत हो जाएगी। इसलिये अपनी आसन्न मृत्यु को सोचकर डर रहा हूं।

गरुड़ जी को कबूतर पर दया आ गई और उन्होंने कबूतर को यमदूतों से छिपा देने का निर्णय लिया। गरुड़ जी ने कबूतर को मलयगंध पर्वत की एक सुरक्षित गुफा में जाकर छिपा दिया, और उसे कहा कि अब तुम निश्चिंत रहो यहां यम दूत पहुंच ही नहीं सकते।

फिर गरुड़राज उड़कर यमलोक जा पहुंचे और हंसकर यमराज को बताया कि वे किस प्रकार कबूतर को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा चुके हैं। यमराज ने मुस्कराते हुये कबूतर का लेखा-जोखा मंगवाया। व्यवस्था थी कि पाटिलपुत्र के विष्णु मंदिर में रहने वाले कबूतर की मृत्यु अमुक तिथि को मलयगंध पर्वत की गुफा में सर्प द्वारा भक्षण किये जाने से होगी। गरुड़ जी विस्मित रह गए और तुरंत लौट कर पर्वत पर जा पहुंचे, उन्होने देखा कि एक सांप कबूतर को निगल रहा है। गरुड़ जी यह सोचकर बहुत दुखी हुये कि मैं रक्षा करने के उद्देश्य से इसे यहां लाया था, लेकिन अब मेरे ही कारण इसकी जान चली गई।

कलियुग में उस कबूतर ने अतीक अहमद नामक माफिया बनकर धरती पर जन्म लिया, वह अपने कुकर्मो की सजा भोगता साबरमती जेल में बन्द था। उसे नैनी जेल ले जाया जा रहा था। अतीक को जेल से जेल शिफ्ट करने वाली, माफिया विकास यादव के एनकाउंटर की कथा याद आ रही थी। वह डर से सारी राह कांप रहा था। जब वह सकुशल नैनी जेल की बैरक में पहुंच गया तो उसने भयग्रस्त होते हुये भी किंचित मुस्कराते हुये अपने आकाओ की  ताकत पर भरोसा कर चैन की सांस ली।

तभी पास ही कहीं लाउड स्पीकर पर भागवत की कथा चल रही थी। कथा वाचक बता रहे थे कि जब गरुड़ जी द्वारा कबूतर को मलय पर्वत पर छिपा देने और वहां उसकी मृत्यु की घटना की जानकारी भगवान विष्णु को हुई तो भगवान ने गरुड़ जी को समझाया कि जन्म की तरह सबका मरण भी सुनिश्चित है। नियत समय, स्थान और नियत कारक से मरने से कोई बचता नहीं।

पता नहीं कि माफिया डान यह सुन सका या नहीं कि कथा सार में यह भी बताया गया कि मृत्यु तो टाली नहीं जा सकती इसलिये समय रहते जीवन का सदुपयोग कर लेना चाहिये।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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