श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 336 ☆
कविता – खैर खबर…
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
गुड मार्निंग का व्हाट्स अप आ गया उनका
समझ लिया कि सब खैरियत ही है
गए वो दिन, जब बेवजह होती थीं गुफ्तगू
बात करने में अब बोरियत ही है
बर्थ डे, एनिवर्सरी पर जो फोन होते हैं
और सुनाओ पे आकर जल्दी
हाले मौसम में अल्फ़ाज़ सिमट जाते हैं
अपनो में भी अब ग़ैरियत ही है
हाथों में हाथ डाले घूमना, मटरगश्ती करना
बीते दिनों की बात हुई
इस अलगाव की वजह शायद, मेरी या उनकी हैसियत ही है
बैठको में सिर्फ सोफे और दीवान बचे हैं ठहाको वाली महफिलें गुमशुदा हैं
क्लब या होटल में मिलना, फ़ज़ूल ही मशगूल होने की कैफियत ही है
मिलें न मिलें रूबरू दिनों महीनो, बरसों बरस की संगत है
पता सब का, सब को सब होता है, ये दोस्तों
अपनी शख्सियत ही है
अच्छे भले में मिल लो यारों, बातें कर लो,
पी लो साथ साथ जाम
कल का किसको पता है, दूरियां हैं, उम्र भी है, चले न चले तबियत ही है
मरने के लिए ही जैसे, जी रहे हैं कई उम्र दराज शख्स
जीने के लिए जियो कुछ नया करो, हर लम्हा जिंदगी की मिल्कियत ही है ।
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© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈