श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – कलयुग केवल नाम अधारा  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 249 ☆

☆ संतोष के दोहे – कलयुग केवल नाम अधारा ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कहे   सनातन   सबसे   यारा

कलयुग  केवल  नाम अधारा

*

सदियों  से  थी  आस  हमारी

राम  लला  ने  जो   स्वीकारी

धन्य  अयोध्या  नगरी   हमरी

जहाँ   बना   है   मंदिर  प्यारा

*

भजन  कीर्तन  पूजा  आरती

नित  मंदिर  में   करें   भारती

आओ हम सब मिल कर गाएं

प्रभु  राम  का  नाम  है  प्यारा

*

उत्सव   प्राण  प्रतिष्ठा  का  है

सबकी  फलित  इच्छा  का  है

शिक्षा  सबको   मिले सनातन 

आज  लगाओ  एक  ही  नारा

*

हिंदू   धर्म  सनातन   क्या   है

क्या   मानव  की  मानवता  है

देता   सनातन   उत्तर   सबके

सबसे    न्यारा    धर्म   हमारा

*

हम  सहिष्णुता के  हैं  पुजारी

नफरत,  हिंसा    हमसे   हारी

सत्य, अहिंसा, दया भाव संग

राम  लला  को  प्रेम  है  प्यारा

*

आओ   खुद  के  अंदर  झांके

औरों   के  हम  दोष  न  ताकें

मिलेगा   “संतोष”   तुम्हें   तब

जब  लोगे  प्रभु   राम   सहारा

*

कहे    सनातन    सबसे   यारा

कलयुग  केवल  नाम   अधारा

 

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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