सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – साॅंझा-चूल्हे टूट गए अब…।
रचना संसार # 40 – गीत – साॅंझा-चूल्हे टूट गए अब… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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साॅंझा-चूल्हे टूट गए अब
पीपल -बरगद सूख चुके सब,
कोयल नहीं दिखाई दे।
गौरेया पानी को तरसे,
मैना नहीं सुनाई दे।।
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मिटी झोपड़ी की यादेंं हैं,
आँखों में पल रही नमी।
पनघट ने पहचान गँवाई
होती जल की नित्य कमी।।
बिखरे रंग प्रेम के सारे ,
रूठे वन-अमराई दे।
*
व्याकुल है ये साँझ सुनहरी,
भोर निराशा भरी रहे ।
क्रंदन करते बच्चे प्यारे,
भीषण तृष्णा धार बहे।।
मानव निष्ठा हुई अगोचर,
छलना को गहराई दे।
*
साॅंझा-चूल्हे टूट गए अब,
बदली भोली गाँव छटा।
हवा लगी शहरों की सबको,
झीलों का सौन्दर्य घटा।।
निश्छल हँसी नहीं अधरों पर,
गुल्लक टूटी पाई दे।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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