प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “कविता – एक ही भगवान की संतान…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 215 ☆
☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – एक ही भगवान की संतान… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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सिक्ख पारसी ईसाई ज्यूँ हिन्दू या मुसलमान
हम सब हैं उसी एक ही भगवान की संतान
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कहते जो धर्म अलग हैं वे सचमुच हैं ना समझ
कुदरत ने तो पैदा किये सब एक से इन्सान ।
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सब चाहते हैं जिंदगी में सुख से रह सकें
सुख-दुख की बातें अपनों से हिलमिल के कह सकें
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खुशियों को उनकी लग न पाये कोई बुरी नजर
इसके लिये ही करते हैं सब धर्म के विधान ।
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सब धर्मों के आधार हैं आराधना विश्वास
स्थल भी कई एक ही हैं या हैं पास-पास
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करते जहाँ चढ़ौतियाँ मनोतियाँ सब साथ
ऐसे भी हैं इस देश में ही सैकड़ों स्थान ।
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मंदिर हो या दरगाह हो मढ़िया या हो या मजार
हर रोज दुआ माँगने जाते वहाँ हजार
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संतो औ’ सूफियों की दर पै भेद नहीं कुछ
इन्सान कोई भी हो वे सब पे है मेहरबान ।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈