डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय बाल लघुकथा – ‘बाँटने से बढ़ता है‘। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 148 ☆
☆ बाल लघुकथा – बाँटने से बढ़ता है ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆
ओंकार प्रतिदिन सूर्योदय के पहले ही उठ जाता और उगते हुए सूरज को प्रणाम करता था।उसके माता – पिता ने समझाया था कि ‘हमें प्रकृति के तत्वों – धरती, सूर्य, चंद्रमा, नदी, समुद्र, पेड़-पौधों सबकी रक्षा करनी चाहिए। हमें इनका आभार मानना चाहिए क्योंकि ये ही प्राणियों के जीवन को स्वस्थ तथा सानंद बनाते हैं। जब सर्दियों में धूप नहीं निकलती तब हमें कैसा लगता है? बारिश नहीं होती तो किसानों के खेत सूखने लगते हैं, तब हम सब कितना परेशान होते हैं।‘
ओंकार सातवीं कक्षा में पढ़ता था। उसने अपने मित्रों को भी ये बातें बताई, सब खुश हो गए। सबने तय कि कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे पर्यावरण को हानि पहुँचे।
ओंकार रोज सुबह होते ही घर की छत पर पहुँच जाता। सुबह की ताजी हवा उसे बहुत भाती।ऐसा लगता मानों ऑक्सीजन सीधे फेफड़ों में भर रही हो। सूरज निकलने तक वह पूरब दिशा की ओर मुँह करके, हाथ जोड़कर खड़ा रहता। आकाश में सूरज की लालिमा झलकने लगती। सूर्योदय का दृश्य बड़ा ही मनमोहक होता है। सफेद – नीला आकाश और उसमें सूर्य – किरणों की लालिमा ! रंगों का कैसा सुंदर मेल ,ऐसा लगता मानों किसी कलाकार ने सिंदूरी रंग आकाश में बिखेर दिया हो। पल भर में ही सूरज का प्रकाश पूरे आकाश में पसर जाता। तेज रोशनी से धरती जगमगा उठती है। चिड़िया चहचहाने लगतीं। पशु – पक्षी मनुष्य सभी उत्साहपूर्वक काम में लग जाते। वह अक्सर सोचता – ‘सूर्य भगवान के पास प्रकाश का भंडार है क्या ? संपूर्ण विश्व को प्रकाश देते हैं पर रोज सुबह वैसे ही चमचमाते आकाश में विराजमान | तेज इतना कि सूरज की ओर आंख उठाकर देखना भी कठिन |’
एक दिन ओंकार ने सूरज से पूछ ही लिया – “आपके पास इतना प्रकाश, इतना तेज कहाँ से आता है? चंद्रमा घटता – बढ़ता रहता है लेकिन आप तो रोज एक जैसे ही दिखते हो?”
सूर्यदेव मुस्कुराए – बड़े प्रेम से अपनी सुनहरी किरणों से ओंकार के सिर पर मानों हाथ फेरते हुए बोले –“बेटा! मेरा प्रकाश बाँटने से बढ़ता है। यह संपूर्ण विश्व के प्राणियों को जीवन देता है,उनमें चेतना जगाता है। जब मैं बादलों से ढंका रहता हूँ तब भी तुम सबके पास ही रहता हूँ। प्रकाश, तेज, ज्ञान, विद्या, इन्हें नाम चाहे कुछ भी दो,ये ऐसा धन है जो बाँटने से बढ़ता है। जितना ज़्यादा दूसरों के काम आता है उतना बढ़ता जाता है।“
ओंकार प्रफुल्लित हो गया। सूर्य के प्रकाश के भंडार का राज उसे समझ में आ गया था। ओंकार ने यह बात गाँठ बाँध ली थी कि ‘हमें जीवन में खूब मेहनत से ज्ञान प्राप्त कर समाज की सेवा करनी चाहिए, जैसे सूरज करता है अनंत काल से पृथ्वी की |”
© डॉ. ऋचा शर्मा
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